हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में बसा एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक गाँव नगर, हर साल एक विशेष उत्सव की गवाह बनता है जिसे ‘शाढ़ी जाच’ कहा जाता है। छह दिनों तक चलने वाला यह लोकपर्व, आज अपने अंतिम चरण में है, लेकिन इसकी गूंज महीनों तक लोगों के दिलों में बनी रहती है।
छह दिन, छह रंग: उत्सव की झलकियाँ
यह पर्व मात्र एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जीवंत लोक-समारोह है जिसमें पारंपरिक वेशभूषा, लोकनृत्य, ढोल-नगाड़ों की गूंज और पूरे नगर की भागीदारी शामिल होती है। हर दिन का एक अलग अर्थ होता है:
- पहला दिन: देवताओं का आमंत्रण और वाद्य यंत्रों के साथ उद्घाटन।
- दूसरा दिन: पारंपरिक गीतों के साथ देव नृत्य की शुरुआत।
- तीसरा और चौथा दिन: देवता की यात्रा और पूजा।
- पाँचवां दिन: ‘बारात’ का दिन – देवता की शादी का उत्सव अपने चरम पर।
- छठा दिन: विदाई और विशेष भोज – पूरे गांव के लिए प्रीतिभोज।
इस बार की खास बात: शुद्ध लोक संस्कृति का प्रदर्शन
इस वर्ष की ‘शाढ़ी जाच’ में विशेष आकर्षण रहा पारंपरिक हस्तशिल्प, हिमाचली वेशभूषा का फैशन शो और स्थानीय महिलाओं द्वारा गाए गए ‘छोहारा गीत’, जो किसी भी श्रोता को लोककला के प्रति श्रद्धा से भर देते हैं।
शाढ़ी जाच क्यों है खास?
यह पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, उस लोक-धरोहर की याद दिलाता है जो आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खोती जा रही है। इसमें भाग लेना केवल एक त्योहार मनाना नहीं, बल्कि हिमाचली विरासत का सम्मान करना है।
अगर आज आप नगर में हैं, तो इसे मिस मत कीजिए!
आज शाढ़ी जाच का अंतिम दिन है – देव विदाई और भव्य भंडारे का आयोजन। अगर आप नगर या मनाली के आसपास हैं, तो यह अंतिम अवसर है इस अद्वितीय पर्व को अनुभव करने का। एक बार जब ढोल बजते हैं, देवता की पालकी गांव से विदा होती है और लोग पारंपरिक ‘नाटी’ में झूमते हैं – तो आप समझते हैं कि संस्कृति केवल किताबों में नहीं, दिलों में जीती है।
कैसे पहुंचे नगर, मनाली?
मनाली से नगर की दूरी मात्र 21 किलोमीटर है और सड़क मार्ग से टैक्सी या लोकल बस सेवा उपलब्ध है। रास्ते में ब्यास नदी की खूबसूरती और देवदार के पेड़ यात्रा को और भी रोमांचक बनाते हैं।
निष्कर्ष: लोकसंस्कृति का यह पर्व अगली पीढ़ी तक पहुँचे
शाढ़ी जाच केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हिमाचली आत्मा का उत्सव है। जब पूरा गांव देवता के साथ नाचता है, तो हर धड़कन में ‘जय देवता’ की गूंज सुनाई देती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि इन पर्वों की जानकारी डिजिटल युग में भी जीवित रहे।
क्या आपने कभी शाढ़ी जाच का अनुभव किया है? कमेंट में जरूर बताएं और इस ब्लॉग को शेयर करें ताकि और लोग भी इस विरासत से जुड़ सकें।