कुल्लू के प्रमुख तीर्थ स्थल: आस्था, इतिहास और दिव्यता का संगम
रघुनाथ मंदिर (कुल्लू)

कुल्लू के मुख्य देवता रघुनाथ जी हैं। कुल्लू दशहरा का आयोजन भी इन्हीं के नाम पर होता है। मान्यता है कि इस मूर्ति का प्रयोग स्वयं भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ के समय किया था, जिसे अयोध्या के त्रेतनाथ मंदिर से लाकर यहां स्थापित किया गया।
इस मंदिर का निर्माण 1660 ईस्वी में हुआ था, और इसकी वास्तुकला में पहाड़ी व पिरामिड शैली का सुंदर समावेश है। यहां प्रतिदिन 5 बार आरती होती है और साल भर में लगभग 45 उत्सव मनाए जाते हैं।
एक लोककथा के अनुसार, राजा जगत सिंह ने ब्राह्मण दुर्गादत्त के श्राप से मुक्ति पाने के लिए 42 दिनों तक रघुनाथ जी की मूर्ति का चरणामृत पिया और उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।
वैष्णो देवी मंदिर (कुल्लू-मनाली मार्ग)
कुल्लू से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर मनाली की ओर जाते हुए स्थित यह मंदिर तीर्थ यात्रा का एक सुंदर स्थान है। यह मंदिर 1964 ईस्वी में एक संत द्वारा स्थापित किया गया था, और अब इसका संचालन शारदा सेवा संघ द्वारा किया जाता है। यहां एक छोटी गुफा है जो कटरा की वैष्णो देवी गुफा की तरह प्रतीत होती है।
मंदिर परिसर में माँ दुर्गा की प्रतिमा के साथ-साथ एक भगवान शिव का मंदिर भी है। यहाँ निशुल्क लंगर की व्यवस्था है और सराय भी है जहां श्रद्धालु रात्रि विश्राम कर सकते हैं। सामने बहती ब्यास नदी का दृश्य इस स्थान की शांति और सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है। मंदिर परिसर में एक एक्यूप्रेशर चिकित्सा केंद्र भी संचालित है, जहां निःशुल्क इलाज किया जाता है।
भेखली मंदिर (भेखली गांव, कुल्लू)
कुल्लू से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों की गोद में स्थित यह गांव भेखली अपने प्राचीन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थान जगन्नाथी माता या भुवनेश्वरी देवी का निवास है, जिन्हें भगवान नारायण की बहन माना जाता है। यह मंदिर लगभग 1500 वर्ष पुराना है और यहां की मूर्तियां और शिल्प स्थानीय कला का अद्भुत उदाहरण हैं।
मंदिर के प्रांगण में स्थित पत्थर का एक शेर और दीवारों पर देवी दुर्गा की विभिन्न मुद्राओं में चित्रकारी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, पलसारा परिवार के एक लड़के की बांसुरी की धुन पर दो देव कन्याएं नृत्य कर रही थीं, जिनके चरण पृथ्वी को नहीं छू रहे थे। उस बालक ने एक देवी को पकड़ लिया, जो गांव में रहने को तैयार हो गईं। नारायण जी ने अपने मंदिर को उनके लिए खाली कर दिया।
यहां अप्रैल, जून और कुल्लू दशहरा के पहले दिन मेले लगते हैं। दशहरे की शाम को देवी की रथ यात्रा (गुर खेल) विशेष आकर्षण होती है। यह स्थल 1833 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण चारों ओर का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है।
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ReplyDeleteSituated in the Pin valley, it is the second oldest Gompa in the Spiti valley. The Gompa follows the Nyingmapa Buddhism, which is the oldest order of Tibetan Buddhism.
ReplyDeleteSpiti Valley
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